विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर योजना हिन्दुत्व के सैद्धांतिक मूल्यों के विपरीत
“विकास आज की आवश्यकता है, लेकिन विकास के नाम पर हिंदुत्ववादियों की सरकार में जिस तरह से काशी के धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं वाले देवालयों और भवनों को नष्ट किया गया वो हिन्दुत्व के सैद्धांतिक मूल्यों के सामने विपरीत रहा है।”
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जिस शहर का सांसद देश का प्रधानमंत्री और प्रदेश का मुख्यमंत्री स्वयं सन्यासी पीठाधीश हो उस प्रदेश के शहर में एक धार्मिक व्यावसायिक योजना के नाम धार्मिक और पौराणिक देवालयों के देवताओं और धार्मिक विरासत के विध्वंस की बात बेमानी लगती है, लेकिन ऐसा हुआ है और वो भी पौराणिक सप्त पुरियों में से एक काशी में।
एक वक्त था जब तक्षशिला के सांस्कृतिक विरासत के सामने दुनिया की शायद ही कोई सांस्कृतिक विरासत ठहर सकती थी। बाहरी आक्रमणकारियों की ऐसी नजर लगी कि धीरे-धीरे उसकी धार्मिक, सांस्कृतिक समृद्धि उनकी लूट-खसोट, उनके द्वारा फैलाये गये धार्मिक उन्माद और नफरत आदि की भेंट चढ़ती चली गई। उस समय में सांस्कृतिक विरासत को जरूर बाहरी आक्रमणकारियों ने विध्वंस किया लेकिन वर्तमान समय में जिस तरह से काशी की प्राचीन धार्मिक विरासत का विध्वंस हो रहा है उसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। “विकास आज की आवश्यकता है, लेकिन विकास के नाम पर हिंदुत्ववादियों की सरकार में जिस तरह से काशी के धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं वाले देवालयों और भवनों को नष्ट किया गया वो हिन्दुत्व के सैद्धांतिक मूल्यों के सामने विपरीत रहा है।”
जिस कट्टर हिन्दुत्व के लिए यूपी में गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ जी की सरकार बनी उनके रहते काशी की आस्था के साथ अन्याय किया गया और दुष्प्रचार कर काशी के लोगों को महत्वहीन बताने की कोशिश की गई। देश-विदेश के लोगों को भ्रमित कर उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक अधिकारी जिसकी परिकल्पनाओं ने काशी में “शस्त्र” और “शास्त्र” का विमोचन कर काशी को कलंकित करने का दुष्प्रचार किया उसे ही राजनीतिक कारणों से विश्वनाथ धाम विकास का नायक भी घोषित किया गया। प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया के पेजों से लेकर अनेक चाटुकारिता वाले लोगों ने दुष्प्रचार किया की काशी के लोगों ने अपने घरों, भवनों में मंदिरों को छुपा कर रखा था, जिस पर टॉयलेट किचन बने हुए थे, कई भवनों को तो तथाकथित गैर हिन्दुओं के घर घोषित किए गए। जिसके कारण देश-विदेश सभी जगहों पर काशी और काशीवासियों को विकास विरोधी और ना जाने क्या-क्या प्रकाशित और प्रसारित कर भावनाओं को आहत किया गया। कॉरिडोर में जितने भी मंदिर निकले उनकी सत्यता लोगो को कोसो दुर रखा गया और सेवा पूजा से लोगो को दूर कर दिया गया।
इसके बहुतों उदाहरण है।
जब काशी विश्वनाथ कॉरिडोर योजना में हिन्दू मजदूरों ने शिवलिंग पर हथौड़ा चलाने से मना कर दिया था तब विदेशी गैर हिन्दू मजदूरों को बुलवा कर शिवलिंगों को हथौड़ों से तोड़वाया और कही कही सीधे जेसीबी से उखाड़ कर कूड़े में फेंक दिया गया। इसका विरोध करने वालों को विकासवादी दलाल कार्यकर्ताओं ने उन्हें झूठा बताते हुयें विकास और हिन्दुत्व विरोधी बताया जाने लगा। जून 2020 को कॉरिडोर हादसे में मरे और घायल हुए मजदूरों का नाम देखकर सिद्ध हो जायगा हिन्दुत्व विनाशक विकास का सच। काश ऐसा होता की मंदिर विध्वंसको का समर्थन करने वालो को हम सजा दे पाते तो महादेव की कसम ये लोग अपने 7 जन्मों में भी मन्दिर की ओर आँख उठाकर नही देखते। सबसे ज्यादा धर्म के गद्दार विकासवादी कार्यकर्ता हैं जिन्होंने अपने नेताओं का समर्थन किया और मन्दिर टूटने से बचाने वालों को गालियाँ दी। दुख बात है आधुनिक विकाश की जो नींव रखी जा रही है वही विकास विनाश का कारण बनेगी अभी भी समय है जाग कर इसे सुधार लिया जाय अन्यथा परिणाम के लिए तैयार रहे ।
विकास योजना के नाम पर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के मूल स्वरूप के साथ काशी खण्डोक्त सैकड़ों मंदिर के ध्वस्तीकरण के बाद गूंगा और अंधा बन योगनिद्रा में चले गये विकासवादीयों का हिंदुत्व राम मंदिर मामले में तो जाग गया कि गूंगे बोलने लगे और अंधे इतिहास के पन्ने देखने लगे जो काशी विश्वनाथ के मामले पर अनभिज्ञ और चुप थे। तथाकथित सेकुलरवादी हिन्दुत्ववाद के विरोधी नहीं होते तो जिन हिन्दुत्ववादी शिवद्रोहीयों की आत्मा ने उनको रामभक्ती के लिए ललकारा है वो ना ललकारते। क्योंकि जिनकी आत्मा राजनीतिक लाभ के कारण पौराणिक काशी खण्डोक्त मंदिरों की रक्षार्थ मर गयी थी। जो बेचारे जिव्हा को लकवा मारने के कारण बोलने में थोड़ी दिक्कत महसूस कर रहे थे। उन्हे पता था इस मामले में बोलने का मतलब अपने हिन्दुत्ववादी स्थानीय नेताओं पर लापरवाही का आरोप लगाना और साथ साथ पार्टी विरोधी तमगा भी लगने लगता इसलिए चाहकर भी शिवभक्ती दिखाने की जगह शिवद्रोही बन गये। पहले की रामभक्ती ऐसी नहीं थी पहले रामभक्त आरोपों का तथ्यात्मक जवाब चाहते थे। यदि आज किसी शिवद्रोही रामभक्त पर आरोप लगे तो उसके चमचा संस्कृति से लबरेज समर्थक बिना जॉच उसे निर्दोष घोषित कर डालेंगे। काशी विश्वनाथ कारिडोर में पौराणिक धार्मिक आस्था से जुड़ी भयंकर अनियमितताओं के बाद भी सरकार की कोई जवाबदेही ना होना इसका परिचायक है। नए विकासवादी समर्थकों का जुनूनी समर्थन व विचारधारा हिन्दुत्ववादियों की रीढ़ के लिए घातक साबित हो सकता है।
कई सप्ताहों से काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर से हटाए गए शिवलिंगों, अक्षय वट व देव विग्रहों के विरुद्ध सोशल मीडिया पर दिख रहे जनाक्रोश पर किसी भी जिम्मेदार राजनेता, शासन या अधिकारी के कान में जूँ न रेंगना इस बात का द्योतक है कि आज सनातन धर्मावलंबियों की किसी को कोई चिंता नहीं है। चाहे धर्म के ठेकेदार मठाधीश हो, राजनीतिज्ञ हों अथवा विरोधी दल के राजनीतिक। मुझे सबसे अधिक दुःख धर्माधिकारियों से है जो संभवत अपनी संपत्तियों को बचाने के प्रयास में अथवा अपनी गद्दी बचाने के लिए, धर्म की राजधानी काशी में धर्म के विरुद्ध हो रहे कुकृत्यों पर सर्वथा मौन धारण किए हुए हैं।
उदाहरण स्वरूप कॉरिडोर योजना के शुरुआती दिनों में मूल विश्वनाथ मंदिर पर बने मस्जिद के चप्पल उतारे जाने वाले एक सामान्य चबूतरे को तोड़े जाने के बाद हजारों की संख्या में जुटे ‘मुसलमान’ विरोधियो की शक्ति को देखकर रातों रात चबूतरे को बनवा दिया गया। इस प्रकरण से यह प्रतीत होता है कि सनातन धर्मावलंबी किसी भी सरकार के लिए तुच्छ प्राणी है। यह एक चेतावनी है सभी सनातन धर्मावलंबियों के लिए कि आने वाले समय में उनका समूल नाश करने से कोई नहीं रोक सकता है। कुछ लोग “सनातन संस्कृति सदियों से चली आ रही है इसे कोई नहीं मिटा सकता है” जैसे निरर्थक टिप्पणी दे सकते हैं। लेकिन उनको यह जानकारी होनी चाहिए कि प्रारम्भ के सनातन देशों की तुलना में आज कितने बचे हैं और उनकी वास्तविक स्थिति क्या है।
ऐसा जान पड़ता है कि काशी विश्वनाथ के मूल स्वरूप एवं गंगा के अस्तित्व को बड़ी ही चालाकी से नष्ट कर यहाँ की ऊर्जा शक्ति को ही समाप्त करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है और कुछ शिवद्रोही इसे ही विकास कह रहे हैं। मुझे इसे बचाने के लिये अपने सनातन संस्कृति पर, अपने काशी विश्वनाथ पर, अपनी भक्ति पर और उनके लिए यथासंभव किये जा रहे प्रयासों पर गर्व है कि कम से कम सर्वेश्वर, विश्वेश्वर या महादेव मुझ तुच्छ प्राणी के जाने अनजाने में किये गए सभी पापों को क्षमा कर देंगे और उनकी भक्ती व उनका सायुज्य प्राप्त करने का मेरा प्रयास फलीभूत होगा।
काशी की पहचान यहाँ की प्राचीन धरोहरों से है, सप्तवार में नौ त्योहार मनाने वाली देवों के देव महादेव की नगरी में तैतीस कोटी देवी-देवताओं के साथ जैनियों के धर्म प्रदर्शक पार्श्वनाथ व सुपार्श्वनाथ की जन्मस्थली होना इसका परिचायक है। जिस नगर में गो०तुलसीदासजी द्वारा रचित “राम चरित्र मानस” की चौपाइयों, कबीरदास जी के दोहे, संत रविदासजी ने पदों और मुंशी प्रेमचंदजी की कहानियों ने आयाम पाया। अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने वाली मर्दानी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म स्थान के साथ ही क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी की कर्मस्थली ने गौरवान्वित किया। वहीं अनेकों भारत रत्न प्राप्त शिक्षाविदों, राजनीतिज्ञों और महान संगीतज्ञों की भारतीय सनातन सभ्यता परंपराओं वाले शहर के लोगों के साथ धोखा किया गया है।
जिन बाबा काशी विश्वनाथ जी में आस्था लेकर देश विदेश से लोग दर्शन करने आते हैं, देश के राष्ट्रपति जी प्रधानमंत्री जी प्रदेश के मुख्यमंत्री जी आते हैं, जिनमें काशी वासियों की आस्था है उन देवता लिए कुछ चाटुकार काशी के एक संत, राजनेताओं ने यहां तक बोल दिया की वर्तमान विश्वनाथ जी पौराणिक नहीं है। ऐसे लोगों ने तो आस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। क्योंकि मूल स्थान तो ज्ञानवापी भी नहीं है। समस्त काशीवासी भी जानते हैं।
(First part of this series of articles can be found here)