आज जब आधुनिक काल खंड की काशी के धार्मिक विरासतों को विकासवादी सरकार द्वारा विध्वंस किया जा रहा है, तो छद्म हिंदुत्ववादी उन्हीं विध्वंस करने वालों के साथ खड़े होकर काशी की धार्मिकता को कलंकित करने का कार्य कर रहे तो छद्म हिंदुत्ववादी हैं ।

 आज जब आधुनिक काल खंड की काशी के धार्मिक विरासतों को विकासवादी सरकार द्वारा विध्वंस किया जा रहा है, तो छद्म हिंदुत्ववादी उन्हीं विध्वंस करने वालों के साथ खड़े होकर काशी की धार्मिकता को कलंकित करने का कार्य कर रहे तो छद्म हिंदुत्ववादी  हैं ।

1862 में विलियम सिम्पसन द्वारा बनाई गयी काशी विश्वनाथ मंदिर का चित्र। चित्र में दिख रहे पंचायतन मंदिर और मंडप को अब ध्वस्त किया जा चूका है।

ना मैं विकास विरोधी हूँ ।
ना ही आधुनिक विकासवादियों का विरोधी हूँ।
मै अंधभक्त हूँ “अपने नाथ विश्वनाथ” का और उनसे जुड़ी परंपराओं का। मुझे अधिकार है विकासवादियों और उनसे जुड़े कर्णधारों से पूछने का कि काशी विश्वनाथ जी के पौराणिक स्वरूप और पंरपराओं के खंडित करने का जिम्मेदार कौन है ?????

इतिहास में जब कभी भी 21वीं सदी के काशी में हुए आधुनिक विकास के काल खंड का वर्णन आएगा तो उसमें काली स्याही से ये अवश्य लिखा जाएगा कि जब काशी के धार्मिक एंव पौराणिक विरासतों को विकासवादी हिन्दुत्व द्वारा विध्वंस किया जा रहा था तो काशी की मूर्धन्य धर्मपरायण जनता विध्वंस करने वालों के ही साथ खड़ी थी और जो थोड़े बहुत लोग विरोध कर भी रहें थे तो छद्म काशीवासी उनका साथ देने की जगह उन्हीं को देशद्रोही और हिन्दुत्व का विरोधी बता के कलंकित करने का कार्य कर रहे थे।

इतिहास में ये भी स्वर्ण अक्षरों से अंकित होगा की “मुगलों ने हमारे धार्मिक स्थलों का विध्वंस कर उन अवशेषों से अपने उपासना स्थल बनाये और हमने छ्द्म विकास के लिये अपने धार्मिक विरासतों का ध्वस्तिकरण कर उनके अवशेषों से आधुनिक धार्मिक-माल बनवाये।

वैसे भी तथाकथित क्योटो बनती काशी में विकासवादीयों के कमाई का मुख्य स्रोत तो बाबा विश्वनाथ ही रहने वाले हैं और बाक़ी कमाई परिसर धार्मिक स्थलों को विध्वंस करके उनके अवशेषों से बनी बड़ी बड़ी 24 इमारतों से जिसमें बड़े बड़े शो रूम, गेस्ट हॉउस, म्यूजियम इत्यादि से हो जाएगी। तथाकथित हिंदू नेताओं की महत्वाकांक्षी स्वार्थ ने काशी की आत्‍मा को सरेआम कत्‍ल कर दिया। जो कभी “महादेव-महादेव” करते थे, भक्‍त से ‘दलाल’ में तब्‍दील हो चुके हैं। कोई हिन्दुत्ववादी कुछ नहीं कर पा रहा है। हर दिन किसी न किसी पौराणिक देवालयों का विध्वंस होते हुए देख रहा है। मुझे पता है कि यह सब आपको बताने का कोई मतलब नहीं है। मेरी आत्‍मा पक्‍के महाल में बसती है। पक्‍का महाल की जब बात करता हूं मैं तो मेरे लिए पक्‍का महाल भोले भंडारी महादेव के विश्‍वनाथ मंदिर के आसपास का इलाका है। ये सिर्फ एक इलाका नहीं है, बल्कि आप लोग जिस बनारस के बारे में जानते हैं, वो वहीं बसता है। बल्कि यह कहना उचित होगा कि वहीं बसता था।

सनातन धर्म में वेद शास्त्र को धर्म का आधार माना गया है जबकि धर्मद्रोही विकासवादी धर्म के शास्त्रीय आधार को नही मानता बल्कि वो इसे बार बार बदलने की बात करता है। विकासवाद के कर्णधारो ने अनेक बार सिद्ध करने का प्रयास किया कि वो कुटरचित विकासवाद व्यवस्था को सही मानते है। कुल मिलाकर विकासवाद युक्त हिन्दुत्व हमारा असली वैदिक हिन्दुत्व नही बल्कि हिन्दू शब्द के नाम पर यह एक नया पन्थ है जिसको स्वलाभ के लिए तथाकथित विकासवादी आगे बढ़ा रहे है जो नाम के तो हिन्दुत्ववादीं है पर इनका हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नही है।

इधर कुछ विकासवादी समर्थकों ने झुठ को सच में बदलने का आर्थिक तौर पर ठेका ले लिया है, इसके लिये वो “चमचाशास्त्र” से ग्रसित हो उन लोगों को अपना चेहरा बना रहे है जिनके वंश का काशीवास समय तो बताया सात पीढियों का जाता है लेकिन सत्य के धरातल से कोसो दुर उनके वंश का काशीवास भी सात दशक का भी नही। जिनके वंश को काशी में आश्रय मिलने के बाद आजीविका का मुख्य साधन सिर्फ ज्ञानवापी स्थित “व्यासपिठ” के अन्तर्गत आने वाले देवालयों की सेवा की एवज में मिलने वाला पारिश्रमिक था। उस परिवार के सदस्य को राजनीतिक उद्देश्यों के लाभ के लिए जिसे “अर्चक” शब्द का ज्ञॉन नही उसे मंदिर का अर्चक बनाकर उनका मनचाहा चलचित्र बनाकर ढकोसला फैलाने की कोशिश कर रहे है। ज्ञॉत रहे जिस परिवार को आजीविका के साधनहीन होने का भान रहता है वह अपनी आजीविका के रक्षार्थ समझौतावादी हो जाता है। वह भी अपने धर्म से उसी तरह विमुख हो जाता है जिस कॉरिडोर निर्माण के दौरान विकासवादी कर्णधार हो रहे है

प्रायोजित महंत (बाए) तथा वास्तविक महंत आचार्य कुलपति तिवारी (दायें)

काशी में विकास के नाम जिस तरह से राजनीतिक रचा-रचाया षड्यंत्र फैलाया जा रहा उससे सनातनी वैदिक व्यवस्था को आघात लगा है, विज्ञापन युक्त षड्यंत्र चलचित्र के तहत काशी के देवालयों में शौचालय बने होने की कहानियों का जमकर प्रचार-प्रसार किया गया और समर्थन में काशी के बाहर के छ्द्म काशीवासि भी “मिले सुर मेरा तुम्हारा” अलापने लगे और काशी मे विकास की परिभाषा का चरित्र-हनन कर दिया। जो भी चलचित्र प्रस्तुत किया उसमें घरों मे देवालय तो दिखा दिया लेकिन देवालयों में रचा-रचाया षड्यंत्र नही प्रस्तुत कर सके। ये बताने में भी असमर्थ रहे की बाबा दरबार के देवालयों में उनके कौन से भौतिक आरोप सिद्ध हो रहे थे।

सनातनधर्म के लिए विकास कार्य करने वाले संगठनों कि वास्तविकता यह है कि वह हिन्दुत्व के आड़ में काशी में आधुनिक विकाश के नाम पर अप्रत्यक्ष रूप से सनातन धर्म को खोखला करने में लगे है जिसमें यह काफी हद तक सफल भी हो चुके है। किसी भी समाज के अधिकांश लोग चिन्तनशील नही होते अर्थात चिन्तन मनन करके किसी को गहराई तक नही समझते बस जैसा दिखता वैसा ही सच मान लेते है। इसलिए किसी भी घटिया वस्तु/व्यक्ति/संस्था को विज्ञापन के जरिये लोगों के मन में अच्छी भावना के साथ बैठा दिया जाता है और इसके लिए करोड़ो के प्रचार का विकासवादी व्यापार फल फूल रहा है।

सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी यदि सनातन धर्म के बारे में थोड़ा बहुत भी जानता होगा तो उसे काशी का धार्मिक महत्व अवश्य पता होगा। हिंदुओ के लिए काशी का क्योटों बनना एक अभिशाप है एक काला नाग है जो हमारे बीच रहकर हमारा ही खाके सिर्फ हमें ही डस रहा है। विकासवादीयों को कितना भी समझा लो पर वो समझ नही सकते क्योंकि उनके पास न तो चिन्तन करने का समय है और न शक्ति। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान ने हमे “निष्काम कर्म” के लिए कहा है। कोई भी व्यक्ति कर्म किये बिना नही रह सकता तो भले ही उसका कर्म निष्कामकर्म वाला ही हो। विकासवादीयों में स्वयं का भाव है लेकिन वास्तव में सनातन वैदिक धर्म क्या है ? और क्षद्महिन्दू विचारधारा से कैसे भिन्न है? उन्हें नही पता।

Sanjeev Ratna Mishra

संजीव रत्न मिश्र विश्वनाथ मंदिर क्षेत्र के निवासी समाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार है। ज्ञॉनवापी परिसर व मस्जिद को लेकर चल रहे मुकदमों के लिए स्व०पं. केदारनाथ व्यास (प्रबंधक व्यासपीठ व ज्ञॉनवापी हाता) ने अपना मुख्तारे आम नियुक्त किया था। रिश्ते में व्यास जी के दौहित्र है।

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