शेख मुजिबुर रहमान की सच्चाई
बीते दिन भारत और बांग्लादेश के प्रधान मंत्रियों ने एक वर्चुअल मीटिंग में बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर रहमान के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा की यह उनके लिए गर्व की बात है की उन्हें बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर मिला। परंतु रहमान के जीवन का एक और पक्ष है जिसे लगभग भुला दिया गया है। १९४० के दशक में रहमान मुस्लिम लीग के नेता और बंगाल के प्रीमियर सुहरावर्दी के करीबी लोगों में से एक था। उसी समय जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग को पूरा करने के लिए डायरेक्ट एक्शन की बात कही थी। जहाँ एक ओर कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार को कोई जानकारी नहीं थी कि इस डायरेक्ट एक्शन का क्या मतलब है? वहीं सुहरावर्दी और उसके साथियों ने इसे क्रियान्वित करने की पूरी योजना बना रखी थी। सुहरावर्दी ने पहले से पुलिस में यूनाइटेड प्रोविंस और बिहार के हिन्दू कॉन्स्टेबल्स की संख्या घटा कर पंजाब और नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस के मुस्लिम की संख्या बढ़ा रखी थी। अगले ही दिन कलकत्ता की सड़कों पर हिन्दुओं का नरसंहार शुरू हो गया। हज़ारों हिन्दू मारे गए एवं पलायन करने को विवश हो गए। इन सब घटनाक्रम के दौरान मुजीबुर रहमान ने न केवल सुहरवर्दी का साथ दिया अपितु इस पूरी हिंसा का दोष भी हिन्दुओं पर ही डाल दिया।
विभाजन के बाद 1970 तक पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं पर हो रहे भीषण अत्याचार को कोई विरोध मुजीबुर्रहमान ने नहीं किया। और केवल अपना राजनीतिक हित साधने के लिये बांग्लादेशीयो पर हो रहे अत्याचार की बात उठानी शुरू की। सत्ता में आने के बाद मुजीबुर रहमान मज़हबी रंग दिखाना शुरू किया जब उसने “जय बंगला” को छोड़कर “ख़ुदा हाफ़िज़” का नारा आपना लिया और बांग्लादेश भी एक इस्लामिक स्टेट में परिवर्तित हो गया जिसका दुष्परिणाम वहाँ के हिन्दू अभी तक भुगत रहे हैं।